Aadhyatmik yog (आध्यात्मिक योग)
🌻Spirituality में आध्यात्मिक योग क्या होता हैं?
आध्यात्मिक योग में वह शारीरिक योग जैसे कि प्राणायाम ,विविध प्रकार के आसन की बात नहीं होती।
आध्यात्मिक योग में मनुष्य सर्वशक्तिमान ईश्वर को प्राप्त करने अथवा उनमें खुद को विलीन कर देने की इच्छा से किया जाता हैं।
लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि, spirituality में आध्यात्म योग कितने
प्रकार से किया जाता हैं?
ठीक हैं! अगर आप नही जानते तो हम आध्यात्म योग के प्रकारों को जानेंगे। इन विविध प्रकारों में से किसी एक प्रकार के योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाकर परम पिता परमेश्वर की भक्ति या साधना करेंगे।
🌻आध्यात्म योग के कितने प्रकार होते हैं?
आध्यात्म योग के कुल सात प्रकार हैं। इन सभी प्रकारों की चर्चा करेंगे।
१) मंत्रयोग (mantrayog):
🌹मंत्र क्या हैं?
मंत्र यानि ,कोई ईश्वर या फिर कोई देवी–देवता की साधना करने के लिए कोई एक श्लोक या फिर नाम ,जिसका बार–बार जपना।
उदाहरण के लिए,भगवान नारायण का मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप करना।
हिंदू धर्म में जाप तुलसीमाला या फिर रुद्राक्ष माला से किया जाता है।परंतु यह जरूरी नहीं कि,सिर्फ माला द्वारा ही मंत्र का जाप किया जाए।मंत्र का जाप बोलकर या फिर मौन रहकर मन में ही किया जाए तो यह सर्वोत्तम होता है।
👉 मंत्रयोग में मंत्र या नाम का जाप करके अपनी चेतना को अंतर्मुखी करके ईश्वर में ध्यान लगाना।
२) भक्तियोग(bhaktiyog):
परमात्मा के अस्तित्व का स्वीकार करके उनके प्रति संपूर्ण आत्मसमर्पण करके भक्ति या साधना करना।
इस योग में ईश्वर को सर्वगुण संपन्न और सर्वशक्तिमान मानकर उनके प्रति विश्वास और श्रद्धा रखी जाती हैं।
इस योग में भक्त या साधक ईश्वर के प्रति प्रेम, श्रध्दा और समर्पण करके उनकी उपासना में एकाग्रचित्त हो जाते हैं।
भक्तियोग में भक्त भगवान की कथाएं ,भजन आदि का श्रवण करते हैं।इसके अलावा वह भगवान का कीर्तन,स्मरण और वंदन द्वारा भगवान को रिझाने की कोशिश करता है।
भक्तियोग में साधक अपने भगवान को ही अपने सुख और दुःख समर्पित करके भक्ति में लीन रहता हैं।
३) ध्यानयोग (dhyanyog):
ध्यानयोग का अर्थ हैं कि;साधक अपने मन को ईश्वर की साधना में इतना तल्लीन कर देता है कि,वह यह भूल ही जाता हैं कि वह एक शरीर भी हैं।
इसमें भक्त भगवान के नाम स्मरण में इतना तल्लीन होकर भक्ति करता हैं कि,उसे दुनिया का या फिर किसी भी भौतिकता का भान ही नही रहता।वह निरंतर भगवान के स्मरण में खुद के मन को केंद्रित कर देते हैं।
४)कर्मयोग(karmyog):
सभी योग में हम मनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण योग कर्मयोग ही हैं।
भगवान कृष्ण भी इस योग को सबसे ज्यादा बेहतर मानते हैं।
हम जैसे सामान्य मनुष्य के लिए दुनिया के सभी सुख–दुःख भोगते हुए भगवान की भक्ति करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग का नाम–भक्तियोग।
इस योग में भक्त अपने भगवान को स्मरण करते हुए जीवन के सभी कर्तव्य और जिम्मेदारी को निभाते हैं।
किसी भी कर्म के बदले में कोई भी लोभ और लालच ना करके निः स्वार्थ भाव से अपने कर्म करने होते हैं।
कर्मयोग में भक्त संसार में रहकर सभी भोग भोगते हुए ईश्वर की भक्ति करते हैं।
भक्त अपने अच्छे कर्म को ही भक्ति मानकर उसे भगवान की शरण में समर्पित करता है।
५) राजयोग(rajyog):
यह कोई ज्योतिष में बताया हुआ योग नहीं हैं! किंतु यह भी आध्यात्म के सभी योग में से ही हैं।
इस योग में साधक अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ने का प्रयास करता हैं।
साधक आत्मा ही परमात्मा हैं और यह कभी भी किसीके द्वारा नष्ट नही होती,यह मानकर ईश्वर की भक्ति करता है।
६) हठयोग(hathyog):
इस योग किसी भौतिक वस्तु के लिए हठ नही किया जाता।
लेकिन, इसमें साधक तप,त्याग,व्रत,
उपवास द्वारा भक्ति करते हैं।
साधक संयमित जीवन जीता है और भौतिक वस्तुओं का मोह नहीं रखते।
आपको कौन से योग द्वारा भक्ति के सर्वोच्च शिखर पर जाना चाहेंगे,वह comment box में जरूर लिखिएगा।
🙏 धन्यवाद
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