mythology story–Eklavya ki kahani in hindi(एकलव्य कि कहानी)
आज आपको
mythological story – Eklavya ki kahani (एकलव्य कि कहानी)
जानने को मिलेगी। वैसे तो आप एकलव्य की थोड़ी–बहोत कहानी जानते होंगे। लेकिन आज आपको Eklavya ki kahani(एकलव्य कि कहानी)
के माध्यम से थोड़ी ज्यादा जानकरी मिलेगी।
लोग हमेशा यह प्रश्न जानने के लिए उत्सुक होते हैं कि,एकलव्य का वध क्यों हुआ और किसके द्वारा हुआ। आज आपको आपके इस प्रश्न का उत्तर
Eklavya ki kahani(एकलव्य की कहानी) के माध्यम से मिलेगा।
➡️ Eklavya ki story (एकलव्य की कहानी)
एकलव्य उस वक्त के एक बड़े ही पराक्रमी निषाद राजा का पुत्र था।एकलव्य के बारे यह भी कहा जाता है कि,वह भगवान कृष्ण का चचेरा भाई था और उस निषाद राजा को मिला था।
Eklavya के पिता निषाद राजा का नाम हिरण्यधनु और माता का नाम सुलेखा था। एकलव्य का नाम अभ्युधन्न रखा गया था। वह अस्त्र और शस्त्र विद्या में बहोत ही निपुण था।इसीलिए उसने निषाद गुरु ने उसका नाम एकलव्य रख दिया।और तभी से अभ्युधन्न का नाम एकलव्य हो गया।एकलव्य को धनुष विद्या में पारंगत होना था।लेकिन उसके निषाद कुल में कोई ऐसा नहीं था,जो उसे धनुष विद्या में पारंगत बना सके। उस वक्त आचार्य गुरु द्रोण ही थे,जो धनुष विद्या सीखा सकते थे।इसीलिए एकलव्य उनसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु द्रोण के पास आया।लेकिन गुरु द्रोण सिर्फ ब्राह्मण और क्षत्रिय जाति के लोगो को ही अपना शिष्य बनाते थे।उन्होंने एकलव्य को अपना शिष्य बनाने से इन्कार कर दिया।
लेकिन ,एकलव्य ने धनुष का ज्ञान प्राप्त करना ठान लिया था।इसीलिए उसने गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई ।जब गुरु द्रोण दूसरे शिष्यों को ज्ञान देते तब एकलव्य छिपकर सिख लेता।फिर मूर्ति के सामने अभ्यास करता।इस तरह एकलव्य ने इतनी धनुष विद्या सिख ली थी कि,वह अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया था।जब गुरु द्रोण को यह बात पता चली तो उन्होंने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में उसके दाएं हाथ का अंगूठा मांग लिया।क्योंकि गुरु द्रोण अर्जुन को विश्व का श्रेष्ठ धनुर्धर बनाना चाहते थे, ऐसा माना जाता है।
लेकिन एकलव्य धनुष चलाने में इतना पारंगत हो गया था कि,उसे धनुष – बाण चलाने के लिए अंगूठे की भी जरूरत नहीं पड़ती थी।कहा जाता हैं कि,एकलव्य अपनी उंगलियों से भी धनुष चला सकता और अपने बाएं हाथ से भी धनुष चलाने में कुशल था।
एक दिन वह श्री कृष्ण के सामने जरासंध की तरफ से युद्ध लड़ा था। उस वक्त भगवान कृष्ण ने एकलव्य की धनुष चलाने की शक्ति को देखकर दंग रह गए और उन्होंने एकलव्य का वध कर दिया।
➡️ Eklavya ka vadh kyon hua aur kisne kiya tha?(एकलव्य का वध क्यों हुआ और किसने किया था?)
एकलव्य बड़ा ही कर्तव्यनिष्ठ शिष्य था। उसने यह साबित कर दिया कि, विद्या पाने के लिए गुरु सामने होना जरूरी नहीं था। आज के जमाने की जो धनुष विद्या का उपयोग किया जाता है वह भी एकलव्य की ही देन है।
लेकिन एकलव्य धर्म का पालन करनेवाला योद्धा होने के बावजूद उसके भोले स्वभाव का फायदा उठाकर जरासंध जैसे अधर्मी लोगो उसका दुरुपयोग करते थे। कहा जाता हैं कि,यदि एकलव्य का वध श्री कृष्ण ने ना किया होता तो महाभारत के युद्ध में एकलव्य दुर्योधन के पक्ष में रहकर सारी पांडव सेना का अकेले ही नाश कर देता।
इन्ही सब कारणों से एक महान योद्धा और धनुर्धारी का भगवान कृष्ण के द्वारा वध करना अनिवार्य बन गया था।
इस प्रकार आज आपने एकलव्य की कहानी के बारे में जाना । एकलव्य से हमे यही सीखने को मिलता हैं कि,ज्ञान लेनेवाला व्यक्ति कोई भी स्थिति हो ज्ञान प्राप्त कर ही लेता है।लेकिन अपने ज्ञान का हमेशा अच्छे कर्मों के लिए ही उपयोग किया जाना चाहिए।
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